दिल्ली यूनिवर्सिटी नहीं बताना चाहती पीएम मोदी की बीए डिग्री: हाई कोर्ट में सुनवाई, जानें पूरा विवाद
दिल्ली – पीएम मोदी की बीए डिग्री को लेकर विवाद की यह लड़ाई अब एक बार फिर कानूनी मंच पर आ गई है। मंगलवार को दिल्ली हाई कोर्ट में उस आरटीआई (सूचना का अधिकार) आवेदन की सुनवाई हुई, जिसमें पीएम मोदी की डिग्री सार्वजनिक करने की मांग की गई थी।
RTI आवेदन और हाई कोर्ट में दलीलें
आरटीआई आवेदक का तर्क था कि सूचना के अधिकार के अंतर्गत ऐसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों का खुलासा होना चाहिए, जिससे व्यापक जनहित को लाभ हो। सीनियर काउंसल संजय हेगड़े ने यह दलील दी कि आरटीआई अधिनियम में ऐसे मामलों में पारदर्शिता बरतने का प्रावधान है। वहीं, दिल्ली यूनिवर्सिटी की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पीएम मोदी की डिग्री का मामला किसी भी सार्वजनिक हित का विषय नहीं है, बल्कि यह केवल सार्वजनिक जिज्ञासा का विषय बन चुका है। उन्होंने अदालत से यह प्रश्न उठाया कि क्या इस मामले में वाकई में जनहित का तत्व मौजूद है।
पीएम मोदी की डिग्री को लेकर पुराना विवाद
पीएम मोदी के दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीए की डिग्री को लेकर पिछले दस सालों से विवाद जारी है। विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस ने लगातार आरोप लगाया है कि नरेंद्र मोदी ने कभी ग्रेजुएशन पूरा नहीं किया, जबकि बीजेपी के नेता उनकी डिग्री का बचाव करते रहे हैं। हालांकि, दिल्ली यूनिवर्सिटी ने इस विषय पर अब तक कोई ठोस तथ्य या प्रमाण प्रस्तुत नहीं किए हैं।
सीआईसी का आदेश और मामला अटका हुआ
मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने 21 दिसंबर 2016 को आदेश जारी किया था, जिसमें 1978 में बीए परीक्षा पास करने वाले छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति दी गई थी – उसी साल में पीएम मोदी ने भी परीक्षा पास की थी। इस आदेश के विरोध में दिल्ली यूनिवर्सिटी ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने 23 जनवरी 2017 को सीआईसी के आदेश पर रोक लगा दी थी, और तब से यह मामला अटका हुआ है।
आगे की कार्यवाही
इस मामले की अगली सुनवाई 19 फरवरी को तय की गई है। अदालत से उम्मीद की जा रही है कि इस सुनवाई में यह तय होगा कि क्या पीएम मोदी की डिग्री का विवरण सार्वजनिक हित में आने वाला है या नहीं।
इस प्रकार, पीएम मोदी की बीए डिग्री को लेकर विवाद में एक बार फिर से कानूनी लड़ाई शुरू हो गई है, जहां दिल्ली यूनिवर्सिटी अपनी दलीलों के माध्यम से इस जानकारी को सार्वजनिक न करने का प्रयास कर रही है। आगे की कार्यवाही और अदालत के निर्णय से ही यह स्पष्ट होगा कि सूचना का अधिकार और सार्वजनिक हित के बीच संतुलन कैसे बनाया जाना चाहिए।